Ladho ke janmdin par kavita poem
आज हम इक्कीसवीं सदी में है। समाज की सोच बहुत बदल गई है। फिर भी कई ऐसे परिवार हैं, जहाँ बेटी के पैदा होने पर जश्न मनाने के बजाय रूदन (रोना) होता है।
आज मैं उन महिलाओं के विषय में बताने जा रही हूँ, जो आज भी बेटा बेटी में फर्क करती हैं। हमारे भारत देश का कई एक गाँव का ऐसा कोना है, जहाँ आज भी बेटियां पैदा होती हैं तो सबसे पहले मा रोती है।
प्रसव पीड़ा से तड़पती मा के आखों से आंसू नहीं गिरता है। परन्तु बेटी के पैदा होने पर आखों से आंसू टपकने लगते हैं।आप समझ सकते हैं कि आज भी बेटियों को लेकर कैसी संकीर्ण मानसिकता है। बेटी पैदा होती हैं तो, मा सबसे अधिक दु:खी होती है। यह कटु सत्य है।मैं प्रत्यक्ष दर्शी हूँ।
अपने तकदीर को कोसती है ।हे भगवान! आपने किस पाप की सजा दी है॰॰॰॰॰॰। इस दृश्य को देखकर मैं चकित हो गई थी। मैंने सोचा समय के साथ संभवतः महिलाओ की सोच बदल जायेंगी।
लेकिन मैं गलत थी आज भी बेटियां पैदा होती हैं तो गाँव में वही सोच है। भले ही परिधान आधुनिक काल की पहने हो। परन्तु मन वहीं बाबा आदम युग का ही है।
कई परिवार गाँव में भी बहुत नेक सोच के हैं। जिनके घर आज बेटियां वह सारा सुख सुविधा प्राप्त कर रही है जो बेटों को मिलता है। लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है।
इसी कड़ी में मेरी लाढो थी जिन्हें मैं अपने साथ लेकर आ गई ।मैंने भी अपनी माँ के मुख से कई बार सुना था कि ” हमरा लइकवन से बढ के बारू” मन बड़ा दुःखी हो जाता था।
ठान ली थी कि मैं आत्म निर्भर बन के रहूंगी ।भगवान की कृपा और मेरी मेहनत दोनों मिल गये। मैं सफल हो गई। लाढो को मैं अपने साथ लेकर आ गई। आज लाढो एक उतम विचार और अच्छी शिक्षा प्राप्त कर चुकी है।
आज लाढो का जन्मदिन है। मैंने उपहार स्वरूप उनके लिए एक कविता की रचना की है, जो निम्नवत है
कविता
फूलों ने बोला खुशबू से, भवरों ने बोला कलियों से।
- सभी चलो मिलके बोलें, हैप्पी बर्थ डे प्यारी छवि से।।
मास आषाढ़ तिथि पूर्णिमा, दिन रहे सोमवार।
बिटिया के आने से सुनी, बगिया में छाई बहार।।
कोमल वदन फूल सा, गोरे गोरे गाल।
छोटे छोटे पांव थे उसके, घुघर घुघर बाल।।
दिन सप्ताह माह बिते, पूरे हो गए साल।
कभी गिरती कभी सम्भलती, बदल गये उसके चाल।
कोयल सी मीठी बोली है, सुरों की है रानी।
बच्पन से ही गीत संगीत की, रुचि है मन में ठानी।।
खुशियों से दामन भर जाये, मुस्कान सदा चेहरे पर हो।
मंजिल तेरी पांव चूमे नित, जहाँ जहाँ तेरा पग हो।।
यही दुवा है मेरी लाढो, एक दिन चाँद सा चमको।।
ऐसी गूंज आवाज की हो, सारी दुनिया में दमको।।
ख्वाहिशे दिल की पूरी हो, सुखों का जहान मिले।
हे प्रभो मेरी लाढो का, पल पल फूलों सा खिले।।
छू पाये ना दु:ख की छाया, जीवन सदा सुखमय हो।।
काया तेरी स्वस्थ सदा हो, रोग मुक्त तन मन हो।।
सबसे प्यार सदा पाओ तुम, सबसे मिलजुल कर रहना।। जहाँ भी जाओ मान सम्मान मिले, स्नेह का पहनो गहना।।
Happy baday Ladho
नोट- दोस्तों आइए हम सभी एक ऐसे सामाज का निर्माण करे जहाँ बेटा बेटी में फर्क ना हो।
धन्यवाद पाठकों
रचना-कृष्णावती कुमारी
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