jane kyon jaruri hai auraton ka aatmnirbhar hona ?
दोस्तों आइए जानते है कि समाज में महिलाओं का आत्मनिर्भर होना क्यों जरूरी है?
एक दिन मैं पार्क में टहलते, कुछ सोचते हुए ऐसे जगह जा पहुंची जहाँ सेवानिवृत्ति बुजुर्गों की टोली बैठी थी। उनमें से एक व्यक्ति जिनके सिर पर एक भी बाल नहीं था, बहुत तेज आवाज में उन्होंने ने कहा-
अरे भई, महिलाओं को बहुत आजादी नहीं देनी चाहिए। उनको दबा कर ही रखना चाहिए, नहीं तो वह सिर पर चढ़ कर बैठ जाती है। शिक्षा पढ़ाई लिखाई तक तो ठीक है। घर के काम काज में ही उलझी रहें वही ठीक है।
सुविधाएं भी ,आर्थिक जरूरतों की चीज़ों को भी दो, परन्तु आर्थिक मामलों में महिलाओं को अपाहिज बना कर ही रखना चाहिए। यह सुनकर मुझे बड़ा दुःख हुआ। आगे चलकर मैं रूक गई और एक पेड़ के नीचे बैठ गई।
सोचने लगी ऐसी सोच हमारे बड़े बुजुर्गों की है। चूंकि मैं गाँव और शहर दोनों से ही वास्ता रखती हूँ। इसीलिए गाँव के कई एक परिवार को पास से जानने का मौका मिला है।
लोगों की सोच ऐसी है कि जिनके परिवार में एक बेटा पैदा हो गया है, समझो उनकी तो लाटरी लग गई। बहु उनके घर में अच्छा खासा दहेज लेकर आती है। इतना ही नहीं कैश के साथ घर का पूरा सामान (home furnishing) A to Z सब कुछ दहेज में लेकर ससुराल आती है।
फिर भी सास की ताने सामने और पीछे में सुनने को मिल ही जाती है कि, मैं तो थोड़े ही सरसों के तेल इतनी टैस्टी सब्ज़ी बना देती थी। गैस सिलेंडर भी तीन तीन महिने चल जाते थे। पता नहीं मां ने क्या सिखाया है। अब तो कुछ दिन में सब खत्म हो जाती है।
किचिन में घुसने से पहले ही, अरे वो बहू तेल मसाला कम खर्च करीयो। गैस सिलेंडर कम ही खर्च करीयो। पति देव घर खरचे के लिए जो पैसे देते वो भी पाई पाई का हिसाब माांगते है ।
साड़ी श्रृृंगार शौक के पैसे मागो तो और खरचे का हवाला दिया जाता है। ऐसे विचार सिर्फ गाँव में ही नहीं है, शहर में भी कई लोगों की ऐसी मानसिकता है। ऐसे लोगों को नारी के घुटन का अहसास ही नहीं है।
इसीलिए मैं नारी स्वावलम्बन की बात कर रही हूँ। नारी की आर्थिक आजादी की बात कर रही हूँ।
मैं जानती हूँ कि कुछ लोगों को हमारी बातें हजम नहीं होगी। परन्तु मैंने जो आखों देखी है अपने कानों से सुनी है समाज के सामने रखूगी। नारी अपने ही परिवार में अलग थलग पड़ जाती है। मैंने जो महसूस किया है वो यह कि ऐसे परिवार में दसो साल लग जाते हैं ससुराल को समझने में।
अब जिस कारण से परिचित होंगे वह है, पति के असामयिक मृत्यु का। इसका नाजायज़ फ़ायदा लोग अकेली नारी के साथ अक्सर उठाते है। कैसे?आइए निम्नवत जानते है-
एक दिन मैं बस से यात्रा कर गाँव जा रही थी। पचास दिन की गर्मी की छुट्टियाँ हुई थी। हमारे बगल वाली सीट पर एक महिला बैठी थी।बड़ी गुम सुम थी आधे रास्ते कट गये हमारी आपस में बात नहीं हुई।
डिनर के लिए एक जगह ढाबे के पास बस रुकी। वही हम दोनों की आपस में बात चीत शुरू हुई। मैंने पूछा आप कहाँ जा रही है ।उन्होंने ने कहा – मैं अपने मैके जा रही हूँ।मेरी बुुढ़ी मा बिमार है। उसे देखने जा रही हूँ । बस इतना कह कर रोने लगीं।
फिर, उनहोंने जो बातें बताई वह सुनकर पैरों तले जमीन खिसक गई। दोस्तों, उस महिला के पति का एक एक्सीडेंट में आकस्मिक मौत हो गयी। महिला उस समय गर्भवती थी। कुछ महीने बाद महिला को बेटा हुआ।
लेकिन दुर्भाग्य अभी पिछा नहीं छोड़ा। एक दिन जेठ की नीयत खराब हो गई और अपनी भवे के कमरे में घुसकर हाथ पकड़ लिया। महिला किसी तरह हाथ छुड़ा कर कमरे से बाहर निकल गयी।सुबह होते ही भाई को फोन की और मैंके चली गयी।
उसके बाद उसका सारा जायजाद जेठ ने हड़प लिया। कुछ सालों बाद भाई भौजाई भी घर से निकाल दिया। बेटा को लेकर आज वह लोगों के घर बर्तन माज कर गुजारा कर रही है। आज अगर महिला स्वावलंबी होती तो इतनी कठिनाईयों का सामना नहीं करना पड़ता।
न जाने दुनिया में ऐसी कितनी महिलाएं (जवान से लेकर बुढ़ी)होंगी जिनका जीवन काटों भरा होगा। मुझे पता है कि मेरे विचारों से कुछ भाई लोग सहमत नहीं होंगे।
परन्तु एक मा बाप अपनी औलाद के सुखी जीवन के लिए निश्चित ही आर्थिक स्वावलम्बन की कामना करते हैं। मैं सभी अभिभावक से अनुरोध करूँगी की अपनी लाढली को आज के समय में ऐसी शिक्षा दे ताकि वो आत्मनिर्भर बने।
आर्थिक आजादी और सशक्त होने से महिलाएं खुशी खुशी जीवन में आने वाली कठिनाइयो और संघर्ष से सामना कर सकती हैं। उम्मीद है मेरी लेख से आप सभी लाभान्वित होंगे।

धन्यवाद दोस्तों
लेखिका –कृष्णावती कुमारी
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