Sampurn Nari jivan Sangharshmay Kyon hai?
sampurn nari jivan sangharsmay kyon hai ?
आइए हम सभी जानते हैं कि कभी किसी का अपमान क्यों नहीं करना चाहिए ? साथियों जब हमें किसी के द्वारा तकलीफ मिलती है, तो हमारा मन भी कहता है, कि उस व्यक्ति को भी उतना कष्ट मिले।
खासकर सास बहू में बहस होने पर दोनो के मन में बहुत तकलीफ होती है। सदियो से इस रिस्ते में खटास हम सभी सुनते और देखते आ रहे है। पहले की सास अपनी बुहूओ को अत्यधिक कष्ट देती थी।
साथियों मैने यह अत्याचार अपने गाँव में सभी वर्ग में बहूओ को सताते हुए देखा है।बाल खिंच कर सीलबट्टा से पीठ पर मारते हुए भी देखा है और गुस्से में मैने उस सास से सिलबट्टे को भी छीना कर फेंका हैl ऐसी क्रूरता सदियो से होते आ रही है।
पीढ़ी दर पीढ़ी सासें इस क्रूरता को अपना हक समझती है I एक लड़की अपने मैके से माँ बाप भाई बहन सभी को त्यागकर ससुराल आती है जहां सिर्फ और सिर्फ उस लड़की से उम्मीद किया जाता है I
यानि की सभी ससुरालियों को बैठे बैठे फ्री में मानो नौकरानी मिल गई जो बिना थके भोर से देर रात तक सभी की सेवा करती रहती है I तनीक भी चूक हुई नहीं कि सास दे दनादन दे दनादन माँ से लेकर बाप दादा तक निपटा देती है I
इतना ही नहीं सास की आवाज सुनकर पति जेठ जेठानी और देवर, सभी भूखे शेर की तरह टूट पड़ते है। अब आप ही बताइए की लड़की का जीवन जीना क्या आसान है? नही न!
फिर भी सबकी ताने, मार, डाट सब कुछ बर्दाश्त कर उस घर में सारी जिंदगी गुजार देती हैं I साथियों ये हर नारी की कहानी है I भारत में कुछ एक ही लड़कियां होंगी जिनकी पूरी जिंदगी खुशियां उनकी दामन थामें होती है I
साथियों, अपमान का बदला अपमान नहीं होता है। इसी लिए अधिकतर लड़कियां अपमान, दुख, डाट सह कर पूरी जिंदगी जो उस पराये घर को, एक सामाजिक सूत्र में बांध कर अपना बना दिया जाता है , जहां लड़की को पूरी जिंदगी बितानी पड़ती है I
आज अधिकतर लड़किया शादी के नाम से भागती है। आइए इस कविता में लाड़ली की मनः स्थिति से परिचित हुआ जाय।
कविता
मन बहुते बा ब्याकुल सखिया,
मन बहुते बा ब्याकुल।
कब अइहे बाबा के सनेसा,
जियरा बड़ा बा आकूल।
पलभर पीहर बिसर ना पावे,
गूूंजे मां की बोली।
कभी लगे किसी ओर से आ गई,
प्यारी सखियन की टोली।।
तडपे जियरा ऐसे मानो,
जल बिन तड़पे माछर।
तनिक ना भावे पीहर आगे ,
इ शतुरा मोर सासुर।।
कभी ननद के बिरहीन बोली,
कभी सास सतावे।
कभी जेठ जेठानी के ताना,
पल पल मोहे डरावे।।
भरल पूरल परिवार बा सगरो,
तबो ना बा केहु आपन।
हरदम जियरा रहे सकेते,
बा चारू ओर से शासन।।
एक अकेली हम पर घर से,
नाही खून के नाता बा।
मोह माया सब त्याग के भईया,
नाही केहु इहा दाता बा।।
कौने कारन हे बिधना,
मोहे ऐसा जीवन दान दीयो ।
जनम मोहे कोई और दिया,
कर्म मोहे कही और दीयो।।
चुप्पी तोड़ो कुछ तो बोलो,
दर्द साहा नहिं जाता I
हे प्रभु आई तेरे शरण में,
अब यह जीवन नहीं भाता ll
दोस्तों आइए हम सभी मिलकर संकल्प लें, कि बेटी हो या बहु दोनों को एक समान प्यार देंगे I सभी सासु माँ से अनुरोध है कि आपकी सास ननद अगर आपको सताई हैं, तो आप उस गति- विधि को अपने बहु के साथ उपयोग नहीं करें l
आप सभी भी पहले किसी की बेटी थीं , बाद में बहू बनीं I दोस्तों आज ज़माना बदल गया l सोच बदल रही है l जब आज दुनिया चांद पर पहुंच गई है तो हम लोग अपने को क्यों नहीं बदल सकते l
धन्यवाद दोस्तों,
रचना- कृष्णावती कुमारी
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