जानें एकलव्य की पूरी कहान IStory of Eklavya.एकलव्य कौन थे,(Who is the Eklavya)
जानें एकलव्य की पूरी कहान–महान एकलव्य को लेकर काफी मतभेद हैI एकलव्य भील थे या राजा के पुत्र थे I इस प्रश्न को लेकर लोगों में भ्रम हैI क्या यह सच है कि भील होने के कारण गुरु द्रोण ने उन्हें शिक्षा नहीं दी? इसको लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जाती है I
आइए इस लेख में एकलव्य के बारे में जानते हैं l साथियों माना जाता है कि एकलव्य श्री कृष्ण के चचेरे भाई थे I वे बासुदेव के भाई के बेटे थे I ज्योतिष के अनुसार यह भी कहा जाता है कि भील राज हिरण्यधनु को उन्हें सौप दिया गया था I
यह माना जाता है कि कभी एक जंगल में वह खो गए थे I उस समय उन्हें हिरण्यधनु नाम के निषाद राजा को वह मिले थे l निषाद राजा ने उनका पालन पोषण किया I तभी से एकलव्य को हिरण्यधनु का पुत्र माना जाता है I इस विषय में कई भ्रांतियां है I
महाभारत काल में प्रयाग राज अर्थात तटवर्ती प्रदेश के सुदूर तक फैला हुआ शृंगबेरपुर राज निषादराज हिरण्य धनु का राज्य था I गंगा के तट पर स्थित श्रींगबेर पुर उनके राज्य की राजधानी थी I इस तरह एकलव्य हिरण्य धनु के पुत्र थे I यदि वह श्री कृष्ण के चचेरे भाई थे तो निश्चित ही यदुवंश के हुए और यदि नहीं तो भील जाति के थे I
महाभारत में एक जगह उल्लेख मिलता है कि वह भील राज के दत्तक पुत्र थे I दोस्तों यह धारणा गलत है कि गुरु द्रोणाचार्य ने उन्हें भील जाति यानि शूद्र जाति के होने के कारण शिक्षा नहीं दिया I बल्कि सच यह है कि द्रोणाचार्य ने भीष्म को बचन दे रखा था कि आपके राज्य के छात्रों को ही शिक्षा प्रदान करूंगा I
साथियों विष्णु पुराण और हरिवंश पुराण के अनुसार एकलव्य अपनी विस्तार वादी सोच के कारण जरासंध से जा मिले थे। एक एकलव्य जरासंध की ओर से मथुरा पर आक्रमण कर यदुवंश का सफाया कर दिया था।जानें एकलव्य की पूरी कहान
यह सुचना भगवान श्रीकृष्ण के पास जब पहुंचती है तो कृष्ण भगवान भी उसे देखने के लिए उत्सुक हो जाते हैं । जिनके हाथ में महज चार अंगुलियों के सहारे धनुष-बाण चलाते हुए वे समझ जाते हैं कि यह पांडवों और उनकी सेना के लिए खतरनाक हो सकता है I
तब भगवान श्रीकृष्ण और एकलव्य के बीच युद्ध होता है I इस युद्ध में एकलव्य वीर गति को प्राप्त हो जाता है Iयह भी कहा जाता है कि युद्ध के दौरान एकलव्य गायब हो जाते हैं I
एकलव्य के वीर गति को प्राप्त या लापता होने के बाद यह भी कहा जाता है कि उनके पुत्र केतुमान सिहासन पर बैठते हैं I महाभारत युद्ध में केतुमान कौरवों के तरफ से युद्ध लडे थे। युद्ध करते समय वह भीम के हाथों मारे जाते हैं I
वो कहते हैं ना कि, “होनहार वीरवान के होत चिकने पात”।एकलव्य ज्ञानवान, बलवान, साहसी और वह जिज्ञासु बालक थाI माना जाता है कि, एकलव्य यदि महाभारत के युद्ध में सम्मिलित होते तो शायद पूरी कौरव और पांडव सेना कभी उनसे जीत नहीं पाती I
परंतु ऐसा इसलिए नहीं हो सका क्योंकि यह अद्भुत बालक अति साहसी और पराक्रमी था I उस बालक ने हार नहीं मानी I गुरु द्रोण की मूर्ति बनाकर और शिक्षा का अभ्यास प्रारंभ कर दिया I प्रति दिन श्रद्धा और लगन से अपने मूर्ति स्वरुप गुरू द्रोण से अनुमति लेकर अभ्यास करता रहा I
गुरू द्रोणाचार्य को एकलव्य के धनुर्विद्या के बारे में कैसे पता चला?
एक बार द्रोणाचार्य अपने शिष्यों यानि कौरवों व पांडवों के साथ धनुर्विद्या अभ्यास के लिए जंगल में गए I साथ में राजकुमारों का कुत्ता भी गया हुआ था I कुता जंगल में उसी स्थान पर चला गया जहां एकलव्य धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था I कुत्ते ने एकलव्य के फटे कपड़े और बिखरे बाल को देख कर भौंकने लगा I
एकलव्य ने सात बाण ऐसे मारा जिससे कुत्ते को चोट भी नहीं लगी और उसका भौंकना भी बंद हो गया I कुत्ता मुँह में सातों बाण लिए वहीं वापस पहुंचा जहां कौरव , पाण्डव एवं द्रोणाचार्य जी थे I
यह देखकर अर्जुन आश्चर्य से बोले गुरुदेव य़ह विद्या तो मैं भी नहीं जानता हूं I य़ह कैसे सम्भव हुआ I आप तो कहते हैं कि मेरी बराबरी का कोई धनुर्धर नहीं हैं I तत्पश्चात गुरु द्रोणाचार्य आगे जाकर देखे तो एकलव्य अभ्यास कर रहे थे I
साथियों ,इसमें कोई दो राय नहीं कि एकलव्य अर्जुन से श्रेष्ठ धनुर्धर नहीं था I यह पता चलते ही गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से पुछा – तुम कहां से इतनी अच्छी धनुर्विद्या सीखे हो I एकलव्य ने कहा , गुरुदेव आपसे। वो कैसे? मैंने आपकी मूर्ति बनाकर उस मूर्ति स्वरुप गुरु द्रोणाचार्य यानि आपसे से सीखा है I
यह सुनकर द्रोणाचार्य जी बोले तब तो मैं गुरु दक्षिणा का हकदार हूं I एकलव्य गुरु दक्षिणा की बात सुनकर अति प्रसन्न हुए और हर्षित होकर बोल उठे। मांगिए गुरुदेव दक्षिणा मैं अवश्य दूँगा I
गुरु द्रोणाचार्य ने कहाः तुम जिस हाथ से प्रत्यंचा चढ़ाते हो उस हाथ का मुझे अंगूठा चाहिए I यह सुनकर बिना देरी किए एकलव्य अपना अंगूठा काट कर गुरु द्रोण को सौप दिए Iसाथियों , य़ह थी एकलव्य की गुरु के प्रति भक्ति और त्याग I
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निष्कर्ष –
महाभारत के एकलव्य की कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि ग्यान का उपयोग अगर उचित स्थान यानि सत्य मार्ग पर किया जाय तो परिणाम उचित होता है और उसी ज्ञान का उपयोग अनीति यानि असत्य के लिए उपयोग किया जाय तो परिणाम गलत होता है I
Note- सभी जानकारियां इन्टरनेट पत्रिका और बुजुर्गों द्वारा मौखिक श्रवण से संग्रह किया गया है I कल्पना भी तभी की जाती है जब कुछ न कुछ घटित हुआ होता है I यह मेरी राय है I
FAQ
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संगृहीता- कृष्णावती कुमारी