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जानें भगवान के हरिहर स्वरुप Mystery Of Harihar form Of God

जानें भगवान के हरिहर स्वरुप का  रहस्य I The mystry of the Harihara form of God

जानें भगवान के हरिहर स्वर – साथियों वेदों में बताया गया है कि, परमात्मा माया के द्वारा अनेकों रूप धारण  करने वाले दिखाई देते हैं I सृष्टि स्थिति और प्रलय के लीला के लिये, ब्रह्मा विष्णु महेश इन तीनों रूपों में प्रकाशित होते है I

भगवान के हरिहर अवतार में भगवान शिव और विष्णु जी का संयुक्त रूप होता है I साथियों हरिहर दो शब्दों से मिलकर बना है I इसका शाब्दिक अर्थ,   हरि का मतलब होता है, विष्णु और हर का मतलब होता हैं, भगवान शिव I अब प्रश्न उठता है कि भगवान हरिहर स्वरुप का रहस्य क्या है?

भगवान शिव के हरिहर स्वर रुप का रहस्य क्या है?What is the of Harihara swarup of Lord Shiva?

आइए विस्तार से नीचे के लेख में जानते हैं I एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने भगवान शिव की स्तुति की जो सर्व सत्व के नाम से जानी जाती है I भगवान शिव ने  स्तुति से प्रसन्न होकर  वर मांगने को कहा I सर्व प्रथम ब्रह्म जी ने वरदान मांगा कि ,हे शिवजी आप मेरे पुत्र हों I

शिव जी ने कहाः मैं आपकी यह इच्छा तब पूर्ण करूंगा,  जब आपसे सृष्टि रचना में सफलता नहीं मिलेगी, तब आप अत्यंत क्रोधित हो जाएंगे और तब मैं आपके क्रोध से उत्पन्न होऊँगा और मैं प्राण रूपी 11 वां रूद्र कहलाऊगा।तब भगवान विष्णु ने वरदान में केवल भक्ति मांगी I इससे भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए I विष्णु जी को शिवजी ने अपना आधा शरीर माना I तभी से वे हरिहर रूप मे पूजे जाते है I

अब साथियों, भगवान के स्वरुप को जानेंगे I भगवान हरिहर के दाहिने भाग में रुद्र के चिन्ह है, तो बाएं भाग में विष्णु के I वह दाहिने हाथ में शूल तथा ऋषि और बाएं हाथ में गद्दा और चक्र धारण करते हैं l इनके दाहिने भाग में लक्ष्मी और बाएं भाग में पार्वती जी  विराजती है I

दोस्तों पुराणों में यह कहा गया है कि, भगवान शिव और भगवान विष्णु एक दूसरे के आत्मा हैं I इतना ही नहीं  दोनों निरंतर एक दूसरे के अराधना में लीन रहते है I

“शिवस्त हृदये विष्णु सह हृदये शिव: अर्थात श्री शिव के हृदय में विष्णु का और श्री विष्णु के हृदय में शिव के लिए सर्वाधिक स्नेह है I

जैसे भगवान शिव श्री हरि के अनन्य भक्त परम वैष्णव हैं I अत:उनके लिए कहा जाता है “वैष्णवाना यथा शम्भु” अर्थात वैष्णवो मेें अग्रगणि शिव शंकर जी है। साथियों श्री हरि के चरणों से निकली गंगा को, शिव जी नेअपने जट्टा जूट मेें बाँध लिया। तभी से गंगाधर कहलाये I

भगवान शिव तामस मूर्ति है और श्री विष्णु जी सात्विक मूर्ति हैं I परंतु एक दूसरे का ध्यान रखने से भगवान शिव कपूर गौर अर्थात स्वेत वर्ण और भगवान विष्णु श्याम वर्ण के अर्थात मेघ वर्ण के हो गए l साथियो वैष्णवो का  तिलक, त्रिशूल का रूप है और शवों का तिलक  अर्थात त्रिपुण्ड, धनुष का रूप है।

अतः शिवजी और विष्णु भगवान में कोई भेद नहीं होता हैं और हमें इनमे भेद नहीं मानना चाहिए I हरि और हर अर्थात  दोनों  प्रकृति वास्तविक तत्व एक ही हैं I शिव के सहस्त्र नाम में चतुर बाहु, हरि,विष्णु आदि नाम मिलते हैं I

साथियों, जब हम विष्णु जी के सहस्त्र नाम का पाठ करते हैं, तो उसमें सर्व शिव व स्थानों आदि नामों का उल्लेख है I इसीलिए अग्नि पुराण में भगवान शिव ने कहा है,कि, हम दोनों में निश्चय ही कोई भेद नहीं है I भेद देखने वाले नरक गामी होते हैं I साथियों पुराणों में हरि और हर में एकता दर्शाने वाला अनेक उदाहरण हमें मिलता है I

जैसे- उदाहरण स्वरुप दैत्य हिरण्यकशिपु  का  बद्ध करने के लिए श्री हरि  विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया I जब वे अति उग्र हो गए तो उनको शांत करने के लिए शिवजी जी सरभा अवतार लेकर उन्हें शान्त किया। साथियों एक बार भक्त नारसी  जी को भगवान शिव ने दर्शन दिया।

और उनसे वरदान मांगने को कहा: तब नारसी जी ने वरदान में मागा कि,  हे भोले नाथ,आपको जो सबसे अधिक प्रिय हो, वहीं मुझे वरदान में देें। यह सुनकर शंकर जी ने कहा:मुझे श्री कृष्ण अति प्रिय लगते है। अतः मैं उनके ही पास ले चलता हूं। यह कह कर भोले नाथ उन्हें गौ लोक में ले गये।

साथियों, शिव महिमा स्त्रोत की रचना करने वाले गंधर्व पुष्पंद जी के अनुसार भगवान विष्णु जी शिव सहस्त्र नाम का प्रति दिन  पाठ करते हुए सहस्त्र कमल पुष्पो से भगवान शिव की पूजा करते थे। एक दिन भगवान शिव परिक्षा लेने के लिए एक कमल पुष्प छुपा लिए, इस पर श्री विष्णु ने अपना नेत्र कमल ही भगवान शिव को अर्पित कर दिया।

फिर क्या, भक्ति का सर्वोच्च उत्कृष्ट स्वरुप में परीनीत हो गया। जो विष्णु भगवान के हाथ में विराजमान हो सृष्टि यानि जगत की रक्षा के लिए सावधान रहते है। रामचरित मानस के लंकाकान्ड में तो विष्णु रूप श्री राम ने अभिन्नता बताते हुए स्पष्ट कह दिया है कि

शिव द्रोही मम दास कहावा।

सो नर सपनेहु मोहे नहीं पावा ।

शंकर प्रिय मम द्रोही, शिव द्रोही मम दास ।

ते नर करही कलप भरी, घोर नरक महु वास।

ब्रह्मवर्त पुराण मेें स्वयं शिवजी के प्रति अपनी श्रद्धा भाव व्यक्त करते हुए कहते हैं, हे देव ,आप मुझे मेरी आत्मा से भी अधिक प्यारे हैं I

अब हरि और हर की मिलन की कथा I 

अब हरी और हर कि मिलन की कथा। एक बार श्री हरि ने स्वप्न में शंकर जी को देखा I जब निद्रा भंग हो गई, तो वे लक्ष्मी जी के साथ गरुड़ पर सवार होकर कैलाश की ओर चल दिये I इसी  प्रकार स्वप्न में शिव जी ने भी श्री विष्णु जी को स्वप्न में देखा l वह भी स्वप्न भंग होने पर  पार्वती जी के साथ नंदी पर सवार होकर बैकुंठ की ओर चल पड़े l

इस प्रकार मार्ग में ही विष्णुजी और शंकर जी की भेट हो गई I दोनों एक दूसरे को देखकर हर्षित हो गए और एक दूसरे से ऐसे गले मिले जैसे कबका  बिछुड़े अब मिलें हों I दोनों एक दूसरे से अपने अपने निवास स्थान पर यानी कैलाश और बैकुंठ में जाने के लिए आग्रह करने लगे I इसी बीच नारदजी वीणा बजाते हुए  उपस्थित हो गए l श्री मन नारायण नारायण का गान करने लगे I

तब पार्वती जी ने नारदजी से कहाः नाराजी आप ही इसका हल निकाल सकते है I नाराजी बोले: माते  भला मैं इसका हल कैसे निकाल सकता हूँ I मुझे तो शिवजी और विष्णु जी एक सा ही लगते हैं I जो बैकुंठ है वहीँ कैलाश है I
फिर यह तय हुआ कि जो पार्वती जी कहेंगी वहीं होगा I पार्वती जी ने कुछ समय विचार करके कहा: हे नारायण आपके अलौकिक प्रेम को तो देख कर यहि लग रहा है,  कि जो बैकुंठ है वहीं कैलाश है I जो कैलाश है वहीं बैकुंठ है I आप दोनों में कोई भेद नहीं हैं I इनमे केवल नाम में ही भेद है और आपकी पत्नियां भी एक ही हैं I जो लक्ष्मी हैं वहीं पार्वती हैं I अब आप दोनों अपने अपने निवास स्थान यानी शिवजी विष्णु स्वरुप कैलास को बैकुंठ मान ले और विष्णु जी शिव स्वरुप बैकुंठ को कैलाश मान लें I
पार्वती जी के वचनों को सुनकर दोनों देव अपने धाम को लौट गए I पुराणों में भगवान हरिहर के विषय में कहाः गया है हम सब सिद्धियों को देने वाले आत्मा रूप एक दूसरे को नमन करने वाले अर्थात सर्व समर्थ माधव अर्थात श्री हरि विष्णु और उमाधव अर्थात भगवान शिव को साष्टांग नमन करते हैं।
साथियों यह सभी जानकारियां बुजुर्गों, इन्टरनेट पत्रिकाएं और कुछ पेपर से संग्रह किया गया है I अच्छा लगे तो शेयर और टिप्पणी जरूर करें ताकि मुझे motivation मिले I

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धन्यवाद दोस्तों,

संसंग्रहिता -कृष्णावती कुमारी 

भगवान के हरि हर स्वरुप का रहस्य
Krishnawati Kumari
नमस्कार, साथियों मैं Krishnawati Kumari इस ब्लॉग की krishnaofficial.co.in की Founder & Writer हूं I मुझे नई चीजों को सीखना  अच्छा लगता है और जितना आता है आप सभी तक पहुंचाना अच्छा लगता है I आप सभी इसी तरह अपना प्यार और सहयोग बनाएं रखें I मैं इसी तरह की आपको रोचक और नई जानकारियां पहुंचाते रहूंगी I

 

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