सास बहू की सोच।
शादी की तैयारी में छः महीने से भाग दौड़ करते- करते, जब ललीता के घर बहू के पांव आ गए,तो ललीता खुशी से फूले नहीं समा रही थी। पड़ोसन के पास कभी जाकर बहू की तारीफ करतीं तो, कभी मन ही मन खुश हो जाती थीं।
आज राघव के पिताजी होते तो कितना खुश होते••••!। ऐसा सोचकर चिन्तित हो जाती••••। फिर कुछ ही पल बाद बैंड बाजा के सुर को याद कर नाचने को आतुर हो जाती। लगभग महीनों तक ललीता के आंखों के सामने मेहमानों और सभी रस्मों के दृश्य सिनेमा की तरह चलता रहा और ललीता का मन नाचने को बावरा हो उठता था।
अब आइए आगे का हाल जानते है। उठते बैठते बहू बेटे को ललीता देखकर ही खुश नहीं बल्कि बेटा बहू को एक साथ बैठकर मुस्कुराते देखकर निहाल हो जाती थी। कुछ दिन बिते एक रात ललीता पहले ही खाना खाकर टी वी पर अपना पसंदीदा आस्था चैनल देख रही थी।
परन्तु ध्यान बेटे बहु के तरफ ही था। उनका नजदीक बैठकर खाना एक दुसरे को आग्रह से परोसना •••••।यह सब देखकर ललीता को बहुत प्यारा लग रहा था। इस तरह प्यार से पन्द्रह दिनों की राघव की छुट्टी कैसे बित गई पता ही नहीं चला। ललीता सुबह उठकर नाश्ता बनाई और टिफिन तैयार कर टेबल पर रखकर जान बूझकर नहाने चली गई।
तब तक बेटा बहू नाश्ता कर लेते है और बेटा यानि राघव ऑफिस चला जाता है और बहू अपने कमरे में चली गई होती है। नहा धोकर ललीता बाथरूम से निकलती है और पूजा करने के बाद आकर यूं हीं फर्श पर लेट जाती है। कुछ देर बाद बहू कान के पास मोबाइल लगाये कमरे से निकलती सोफे के आगे पीछे नजर दौड़ाती हुई ब बोलती है, पता नहीं कहाँ है,दिख नहीं रहीं है। ऐसे तो खाना भी खाओ तो सिर पर बैठी रहतीं है।
आधुनिक बहू की सोच
जैसे ही यह आवाज ललीता के कानों में पड़ती है, ललीता का दिल कांच जैसे टुट जाता है। जो ललीता बेटा बहू के मुस्कान से निहाल हो रही थी वह यह क्या सुन रही है •••••! “नैन भरी आयो ” ललीता रो पड़ती•••••••! कुछ समय वही मुर्दे की तरह पड़ी रहती है••••। कुछ देर बाद बहू जब देखती है कि सासू मां तो यही फर्श पर लेटीं हैं। अब बहू टेन्शन में आ जाती है••••। मां जी तो मेरी बात सुन लीं है। अब मैं क्या करूं•••••?उधेड़ बून में लग जाती ।
राघव शाम को ऑफिस से आकर दरवाजे का घंटी बजाता है। बहू आवाज सुनते ही अपने कमरे से जलदी सेे निकलकर दरवाजा झट से खोलती है और राघव को अपने कमरे में ले जाकर अपनी सारी गलती पहले ही बता देती है। राघव अब अपनी माँ को ढूढ़ते जाता है, मां के कमरे में। मां से कहता है- बड़ी जोर की भूख लगी है मां।
ललीता चुपचाप बेटे को खाना देकर अपने रूम में चली जाती है। राघव खाना खाकर मीना यानि अपनी पत्नी के कमरे में जाता है और उससे कहता है: मेरी मां दिल की बहुत अच्छी है तुम चलो माफी मांग लो! मीना डरी डरी सासू के पैर पकड़ लेती है और रोने लगती है। मां जी मुझे माफ कर दीजिए।
सासू माँ और बहू के रिस्ते ।
सासू माँ कहतीं हैं-नहीं बेटा तुम सही हो, मैं गलत करती थी। मुझे समझ नहीं थी, कि आप दोनों के बीच कब बैठना चाहिए, कब नहीं बैठना चाहिए, क्यों कि हर रिश्ते में प्राइवेसी होनी चाहिए। मुझे तो आप दोनों का प्यार से रहना, मुस्कुराना बहुत अच्छा लगता था। इसीलिए बैठ जाती थी।इतना सुनते ही••• तीनों एक दुसरे के गले लग जाते है। सारे गिले शिकवे पल भर में दूर हो जाते हैं।
शिक्षा- इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है, कि यदि रिश्ते में पारदर्शिता हो तो वह रिश्ता कभी नहीं टूटता है।
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