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होली पर निबंध कक्षा 6 से 10 के लिए

होली पर निबंध कक्षा 6 से 10 के लिए। Holi kyon manai jaati hai, Essay  on Holi ,Holika dahan ,Hinduon ka mukhy tyauhar holi 

होली पर निबंध कक्षा 6 से 10 के लिए- होली भारत में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह फाल्गुन मास की समाप्ति के बाद चैत्र मास के प्रथम दिन( प्रतिपदा को )मनाया जाता है।चैत्र मास हिन्दुओं के कैलेंडर का प्रथम माह होता है।

इस तरह होली हिन्दुओं के लिए नव वर्ष का भी त्यौहार है। इस त्यौहार में लोग बैर-भाव को भूलकर एक दूसरे को रंग,अबीर एवं गुलाल लगाते है और नाचते गाते है। वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला त्यौहार रंगबिरंगा एवं मस्ती भरा होता है।

होली क्यों मनाई जाती है ?

होली के त्यौहार के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं,जिसमें से प्रहलाद और होलिका की कथा सर्वाधिक मान्य है। विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार हिरण्यकशिपु ने कठोर तपस्या कर भगवान से यह वरदान प्राप्त कर किया था कि, वह न तो  पृथ्वी पर, नहीं आकाश में, न दिन में, न रात में, न घर में,न बाहर, न अस्त्र से ,न शस्त्र से, न मानव से और नही पशु से मारा जाएगा।

इस वरदान के प्रभाव से उसने सिर्फ पृथ्वी पर ही नहीं ,देवलोक पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया था। वह भगवान से घृणा करने लगा। सारी प्रजा से अपनी पूजा करने की आग्या दी।

हिरण्य कश्यप सारी दुनिया को विष्णु भगवान की पूजा अर्चना करने से मना कर दिया था। किन्तु भाग्य की विडम्बना देखिए कि उसका ही अपना पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त निकला। जब हिरण्य कश्यप को प्रहलाद के बारे में पता चला तो उसने अपने पुत्र को बहला फुसला कर उसे अपनी ओर करने की कोशिश की, इसके बाद भी  प्रहलाद के मन मेें विष्णु के प्रति  भक्ति में कमी नहीं हुई।

यह देखकर उसने प्रहलाद को मारने के कई तरकीब ढूंढ़े।पहाड़ से नीचे फेक दिया। पागल हाथी के सामने रख दिया। परन्तु मार नहीं पाया।उसके सारे प्रयास व्यर्थ साबित हुए। तब जाकर उसने अपनी बहन होलिका को यह आदेश दिया कि वह प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ जाए। होलिका को ईश्वर ने वरदान स्वरुप एक ऐसा वस्त्र प्रदान किया था कि जिसके होते हुए अग्नि का उसपर कोई असर नहीं पड़ सकता।

होलिका जब प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि के बीच में बैठी तो भगवान विष्णु के प्रताप से होलिका का न जलने  वाला वस्त्र एकाएक उससे अलग हो गया और वह अग्नि में जलकर भस्म हो गई। भगवान विष्णु के प्रताप से प्रहलाद अग्नि से सुरक्षित बच गया। प्रहलाद ”ओम् नमो भगवते वासुदेवाय ” का जाप करते रहा।

अब तंग आकर हिरण्यकशिपु प्रहलाद को लोहे के एक खम्भे से बाध दिया और पूछा “कहां है तेरा भगवान बुला उसे, क्या वह तुझे बचाने के लिए आएगा?” प्रहलाद ने उत्तर दिया कि “भगवान तो हर जगह है। “इस पर हिरण्य कश्यप ने प्रतिक्रिया किया “क्या वह इस खम्भे में भी है? ” प्रहलाद ने उत्तर दिया, हां इस खम्भे में भी है। “

यह सुनकर  हिरण्य कश्यप क्रोधित होकर कहता है-तो ले मैं इस खम्भे को तोड़ देता हूं और साथ में तुझे भी समाप्त कर देता हूं। बुला सकता है तो बुला अपने भगवान को। “संध्याकाल था प्रहलाद अपने प्रभो का ध्यान करने लगा।

हिरण्यकशिपु जैसे ही अपने गदा से खम्भे पर वार किया, उसमें से श्रीहरि नरसिंह रूप में प्रकट हो गए। उन्होोंने दरवाज़े के देहली पर बैठ कर उसे अपनी जांंघ पर लिटा दिया और अपने नाखूनों से हिरणायकश्प का बध कर दिया। इस तरह उसका बध न तो घर में नाही बाहर हुआ। नहीं धरती पर, नहीं आकाश में हुआ।

नहीं रात में नहीं दिन में हुआ। न उसे मानव ने मारा नहीं उसे पशु ने मारा। बल्कि उसे नरसिंह अवतार भगवान ने मारा। नहीं अस्त्र से मारा नहीं शस्त्र से बल्कि वह नाखूनों से मारा गया। इस तरह ईश्वर का वरदान भी बरकरार रहा एवं उसका बध भी हो गया। हिरण्य कश्यप के अत्याचारों से मुक्ति पाने के उपलक्ष्य में लोगों ने रंग अबीर गुलाल के साथ होली का त्यौहार मनाया।

होलिका दहन कब होती है ?

तभी से इस त्यौहार की परंपरा चली आ रही है। होली की पूर्व संध्याकाल में होलिका दहन किया जाता है। इसमें आस पड़ोस की सारी गंदगियों को जला दिया जाता है। इस तरह पर्यावरण को स्वच्छ करने के दृष्टिकोण से भी यह त्यौहार महत्वपूर्ण है।

इतना ही नही होलिका जिस तरह से  अपनी बुरी इच्छाओं के साथ अग्नि में जलकर भस्म हो गई। ठीक उसी प्रकार होलिका दहन द्वारा अहम (घमंड), बैर-भाव एवं ईष्या जैसे अवगुणों को भी भस्म करने की कोशिश की जाती है। इसके बाद मन प्रेम भाव से भर जाता है। अगले ही दिन सभी एक दुुसरे को रंग लगाते और बधाई देते हैं।

होली का त्यौहार राधा और कृष्ण से भी संबंधित है ।

होली का त्यौहार राधा और कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है। वसंत ऋतु में होली खेलना श्रीकृष्ण लीला का अभिन्न अंग माना गया है। इसलिए श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा एवं वृन्दावन में होली अत्यधिक धूम धाम से मनाई जाती है। सभी राधे और कृष्ण के रंग में डूब जाते हैं।बरसाने एवं नन्दगाँव की होली विश्व प्रसिद्ध है।

होली के त्यौहार का सामाजिक महत्व-

होली के त्यौहार का सामाजिक महत्व भी है। फाल्गुन मास की समाप्ति से पहले किसान अपनी फसल के रूप में अपने परिश्रम का फल पा चूके होते हैं। माना जाता है कि किसान अपनी नई फसल को सर्वप्रथम ईश्वर को अर्पित करने के बाद ही अपने प्रयोग में लाते हैं। अच्छी फसल की खुशी के रूप में लोग रंगों के साथ मस्ती में इस त्यौहार को मनाते हैं।

पूरे भारत में होली किस किस रूप में मनाई जाती है-

पूरे भारत में होली का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाया जाता हैं। किन्तु क्षेत्रीय विविधता के कारण हर  में इसे अलग अलग नामों से मनाया जाता है।जैसे-

•पश्चिम बंगाल में ,बसंंतोत्सव  कहा जाता है ।

•पंजाब में इसे होला-मोहल्ला कहा जाता है।

• तमिलनााडु में इसे कामन पोडिगई   कहा जाता है।

•हरियाणा में इसे धुलैण्डी कहा जाता है।

• महाराष्ट्र में इसे रंग-पंचमी के रूप में मनाया जाता है।

• कोंकण में इसे शिमगो के रूप में मनाया जाता है।

भले ही हर क्षेत्र में होली अलग नामों से मनाया जाता है। परन्तु एक समानता है वह यह है कि रंगो का प्रयोग सभी  जगह होता है। सभी जगह इस दिन लोग एक दूसरे को रंग अबीर एवं गुलाल लगाते है  और बधाई देते है।

इस तरह पर्व त्यौहार हमारी संस्कृति के परिचायक है।  हमें अपनी सभ्यता-संस्कृति के संरक्षण के लिए इनकी पवित्रता को बनाए रखना चाहिए। होली का त्यौहार आपस में भाईचारा एवं प्रेम बढ़ाने में सहायक होता है। होली की चर्चा हो और होली गीत ना हो।

यह भी पढ़ें:

 

संग्रहिता-कृष्णावती कुमारी

 

नमस्कार, साथियों मैं Krishnawati Kumari इस ब्लॉग की krishnaofficial.co.in की Founder & Writer हूं I मुझे नई चीजों को सीखना  अच्छा लगता है और जितना आता है आप सभी तक पहुंचाना अच्छा लगता है I आप सभी इसी तरह अपना प्यार और सहयोग बनाएं रखें I मैं इसी तरह की आपको रोचक और नई जानकारियां पहुंचाते रहूंगी।

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