शिवरात्रि को महा शिवरात्रि क्यों कहा जाता है| महा शिवरात्री ,
ऐसे तो माह के बारहों महीने में शिवरात्रि आती है, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि फाल्गुन महीने में कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी को ही शिवरात्री को महाशिव रात्रि क्यों कहा जाता है? आइये निम्नवत इस प्रश्न को समझने की कोशिश किया जाय |
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को महीने की सबसे अंधेरी रात होती है। जब सूरज उतरायण होते है तो धरती के उतरी गोलार्ध में सूरज की गति उतर की ओर होती जाती है।इसी महीने में कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को एक ख़ास उर्जाएं कुदरती तौर पर मनुष्य के शरीर में उपर की ओर जाती हैै,इसी लिये फाल्गुन मास के शिवरात्रि को ‘महाशिवरात्रि’ कहा जाता है।
खासतौर पर वेलांगिरी पहाड़ियों में यह और भी ज्यादा है। योग विज्ञान तो काफी पहले ही इस बात को सिद्ध कर चुका है अब आधुनिक विग्यान भी मान लिया है कि शुन्य डिग्री आक्षांश से यानि विषुवत रेखा या इक्वेटर से तैतीस डिग्री आक्षांश तक , शरीर के अंदर खड़ी अवस्था में जो भी साधना की जाती है वह सबसे ज्यादे असरदार होती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ,एक और कथा प्रचलित है। माना जाता है कि इसी तिथि को आधी रात में भगवान शिव, निराकार ब्रह्म स्वरूप से साकार स्वरूप यानि रूद्र रूप में अवतरित हुए थे। इसलिए फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के शिव रात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। इस तिथि को भगवान शिव की विशेष रूप की पूजा की जाती है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो व्यक्ति श्रद्धा भक्ति से शिव जी की विधिवत पूजा करते है,उन पर शंकर और पार्वती जी की सदैव कृपा बनी रहती है। शंं का अर्थ है कल्याणकारी और कर का अर्थ है करने वाला। गरूूण,स्कंद,अग्नि, शिव तथा पद्म पुराण में भी महाशिव रात्रि का उल्लेख मिलता है।
भले ही कथा में एकरूपता नहीं परन्तु महाशिव रात्रि का महत्व सभी कथाओं में मिलता है। संंत शिरो मणि गोस्वामी तुलसी दास जी ने भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के मुख से कहलवाया है,
” शिव द्रोही मम दास कहावा ,सो नर सपनेहु मोही नहीं भावा।“
अर्थात जो मनुष्य भगवान शिव की उपेक्षा करता है, उसे मैं बिल्कुल पसंद नही करता हूँ। भगवान शिव से द्रोह करने वाले को मैं कभी प्राप्त नही हो सकता। इस दिन जो व्यक्ति भोले बाबा को जल भी अर्पित करता है,तो भगवान शिव की असीम कृपा सदा बनी रहती है।
पूजन विधि –
ताम्र या पीतल के स्वच्छ पात्र में जल भरकर, उपर से बेलपत्र, धतूरा, भांग और अकवन पुष्प, चावल आदि शिव लिंग पर चढ़ाएं। इस प्रकार भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न हो जाते है। अब मैैंने अपने मन के भावों को कविता का रूप दिया है जो निम्नवत है-
कविता
जब सब कुछ भोले तेरा है,
तब, क्यों जग में तेरा मेरा है?
हर सांसों में हर धड़कन में,
सब पर तेरा ही बसेरा है!
ब्रहमांड के हर कण कण में तू,
सब जन जन में शक्ति तेरी।
सुख में है तू दुख में है तू,
माया तेरी लीला तेरी।
समर्पण में तू अर्पण में तू,
रैना तेरी उषा तेरी।
जीवन में तू मरण में तू,
आस्मा तेरा धरा तेरी।
तेरी रचना में रंग भेद,
कोई गोरा कोई काला है।
कोई अंधा कोई लंगड़ा।
कोई कृपण कोई दिलवाला है।
पतझड़ बहार जीवन में दिया,
कहीं बगियन बगियन फूल खिला।
कहीं, सूनी है मांग सुनी है गोद,
कैसी है ये तेरी लीला।
तेरी कृपा जग जाहिर है,
दर से ना खाली जाता कोई।
हे दीन बन्धु दया सागर,
लाता भर झोली हर कोई।
जय भोले नाथ !!
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रचना- कृष्णावती कुमारी
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